New Delhi (PIB)-आदिकाल से ही भारत में महिलाओं का समाज में प्रमुख स्थान रहा है। हम ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ का देश हैं। अर्थात ‘जहाँ स्त्रियों का सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों का सम्मान नहीं होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं”- यह भाव, विचार और विश्वास भारतीय मानस में बसा हुआ है। ‘शतपथ ब्राह्मण’ में उल्लेख मिलता है कि श्रीराम के गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल में संगीत व पर्यावरण- संरक्षण का शिक्षण उनकी महान विदुषी पत्नी अरुन्धति ही देती थीं। ऋग्वेद में भी गार्गी, मैत्रेयी, घोषा, अपाला, लोपामुद्रा, रोमशां जैसी अनेक वेद मंत्रद्रष्टा ऋषिकाओं का उल्लेख मिलता है जिनके ब्रह्मज्ञान से समूचा ऋषि समाज उल्लसित था, परन्तु दु:ख का विषय है कि स्त्री-शिक्षा की इतनी गौरवपूर्ण व स्वर्णिम परिपाटी, परवर्ती काल में खासतौर से मध्ययुग में आक्रांताओं के शासनकाल और उसके बाद फिरंगियों की गुलामी के दौरान छिन्न-भिन्न होती चली गयी। आजादी के संघर्ष के दौरान और आजादी के बाद महिलाओं का समाज में पुनः कुछ सम्मान बढ़ा, लेकिन उनके प्रगति की गति दशकों तक धीमी रही। गरीबी व निरक्षरता महिलाओं के सशक्तिकरण में गंभीर बाधा रही हैं।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का उद्देश्य महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समानता दिलवाने के लिए प्रोत्साहित करना है। इस दिवस का उद्देश्य महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना है । महिलाओं और पुरुषों के बीच समाज में जड़ें जमा चुकी असमानताओं को मिटाकर समानता लाने के उद्देश्य से महिला दिवस मनाया जाता है।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के नायक महात्मा गांधी ने 23 दिसंबर 1936 को अखिल भारतीय महिला सम्मेलन के अपने भाषण में कहा था: “जब महिला, जिसे हम अबला कहते हैं, सबला बन जाएगी , तो वे सभी जो असहाय हैं, शक्तिशाली बन जाएंगे।” इसी क्रम में बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर भी सशक्त भारत के निर्माण में महिलाओं के महत्त्व को रेखांकित करते हुए लिखते हैं “सामाजिक न्याय के लिए महिला सशक्तिकरण का होना जरूरी है तभी समाज में महिला का उत्थान हो सकता है”। महिलाओं के उत्थान से ही स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लोकतांत्रिक विचारों के साथ समाज का पुनः निर्माण संभव है ।
जब 1920 के आसपास दुनिया भर में महिलाएं अपने समान नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन कर रही थीं तब हिंदी के ख्यातिलब्ध रचनाकार मुंशी प्रेमचंद लिख रहे थे कि ‘यदि पुरूष में स्त्री के गुण आ जायें तो वह देवता हो जाता है’ । रानी अहिल्याबाई होलकर से लेकर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई तक, रानी गाइदिन्ल्यू से लेकर सावित्रीबाई फुले तक महिलाओं ने समाज में बदलाव के बडे़ उदाहरण स्थापित किए हैं। वर्तमान भारत इन महान महिलाओं के प्रेरणादायी जीवन से तत्व ग्रहण कर अग्रसर हो रहा है।
इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम ‘कार्रवाई में तेज़ी लाना’ (Accelerate Action) है। इस थीम का संदेश है कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए ठोस और तेजी से कदम उठाने की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के मार्गदर्शन में हमारी सरकार ने विभिन्न नीतियों और योजनाओं के माध्यम से महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण हेतु अनेक ठोस कदम उठाए हैं। यह नीतियां महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक स्वतंत्रता, सुरक्षा और राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाई गई हैं। पिछले दस वर्षों में महिला सशक्तिकरण के लिए मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न योजनाओं का जमीन पर लाभ दिखना शुरू हो गया है।
गरीब परिवारों की महिलाओं को मुफ्त एलपीजी गैस कनेक्शन प्रदान करना हो, स्वास्थ्य और सुविधा में सुधार हेतु ‘उज्ज्वला योजना’ हो या बालिकाओं की शिक्षा और भविष्य की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ हो, महिलाओं-बेटियों का हित भारत सरकार की प्राथमिकता हैं। मातृत्व लाभ अधिनियम में संशोधन कर महिला कर्मियों को मिलने वाले मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दी गई है। उधर मोदी सरकार द्वारा छोटे व्यवसायियों की मदद के लिए शुरू की गई मुद्रालोन योजना में महिलाओं की भागीदारी 69 प्रतिशत है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में 3 करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य है। इसके अलावा स्टैंड अप इंडिया के तहत खास तौर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग की महिलाओं को ऋण दिया जाता है जिसके तहत अब तक 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक के ऋण स्वीकृत किया जा चुके हैं। “बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ” और “मिशन शक्ति” जैसी योजनाओं एवं “सेल्फ़ी विद डॉटर” जैसी पहलों ने हमारी बालिकाओं- युवतियों के लिए नया आसमान खोला है। महिला स्वयं सहायता समूह (एसएचजी/SHG) सशक्तिकरण योजना द्वारा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिला समूहों को आर्थिक सहायता प्रदान कर उनकी भागीदारी को बढ़ाने के नए कीर्तिमान बनाए जा रहे हैं। आज भारत की नारी एक नए आर्थिक क्षितिज की ओर अग्रसर है।
शिक्षा, सफलता की महत्वपूर्ण सीढ़ी मानी जाती है। इस सन्दर्भ में महात्मा गांधी का यह कथन और भी अर्थवान है- “जब एक पुरुष शिक्षित होता है तब एक व्यक्ति शिक्षित होता है लेकिन जब एक महिला शिक्षित होती है तब एक परिवार शिक्षित होता है’। इस सूक्ति के मद्देनज़र मोदी सरकार के शासन में भारत में उच्च शिक्षा में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक रूप से बढ़ रही है। 2014-15 के बाद से उच्च शिक्षा में नामांकन दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, महिला नामांकन दर 1.57 करोड़ से बढ़कर 2.18 करोड़ हो गया है।
‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ द्वारा संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने का अद्वितीय कार्य हो, तीन तलाक़ कानून द्वारा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो, पुलिस बल में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए महिला बटालियनों का गठन हो, अथवा शिक्षा और कौशल विकास में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए नए संस्थान और ट्रेनिंग प्रोग्राम, हमारी सरकार महिलाओं की अग्रणी भूमिका को सुनिश्चित करने के लिए कृत संकल्पित है। कला, खेल, अभिनय, राजनीति से लेकर सरकारी नौकरियों व प्रोफेशनल जगत- सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में भारतीय महिलाएं अपनी भागीदारी न सिर्फ़ सुनिश्चित कर रही हैं बल्कि अपने दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन करते हुए अपनी धाक भी बना रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब विकसित भारत के लिए अपने चार स्तंभों की बात करते हैं तो उसमें महिलाएं भी एक हैं। इस ‘विकसित भारत’ के संकल्प की सिद्धि में निसंदेह महिलाओं की चतुर्दिक भूमिका होने वाली है। ऐसे में हमें महिलाओं के पराक्रम और क्षमता को समझने की जरूरत है। आइए इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम, महिलाओं के विकास का पथ प्रशस्त करने का संकल्प लें । विकसित एवं सशक्त भारत की निर्माण यात्रा, महिलाओं के समग्र सशक्तिकरण के माध्यम से ही संपन्न होगी ।
(श्रीमती अन्नपूर्णा देवी, भारत सरकार की केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं)