देहरादून : भारत ने हाल ही में अपने एक युवा, प्रतिभाशाली और प्रतिबद्ध सिविल सेवक श्री जितेंद्र रावत को खो दिया। भारतीय विदेश सेवा के 2011 बैच के इस होनहार और प्रगतिशील राजनयिक ने अपनी कूटनीतिक कुशलता और समर्पण से देश की विदेश नीति को नई ऊंचाइयां दीं। उनकी असमय विदाई से पूरा राजनयिक समुदाय शोकाकुल है।
शिक्षा और कूटनीति की ओर बढ़ते कदम
उत्तराखंड के मूल निवासी जितेंद्र रावत ने एनआईटी कालीकट से इंजीनियरिंग और आईआईटी दिल्ली से एमबीए करने के बाद सिविल सेवा को अपने करियर के रूप में चुना। उनकी यह यात्रा न केवल एक अकादमिक उत्कृष्टता का प्रतीक थी, बल्कि भारत की विदेश नीति में उनके महत्वपूर्ण योगदान की भी गवाह बनी।
2011 में जब उन्होंने भारतीय विदेश सेवा जॉइन की, तभी उनके सहकर्मियों को एहसास हो गया था कि कूटनीति उनके स्वभाव में है। उनका संतुलित व्यवहार और मजबूत शैक्षणिक पृष्ठभूमि उन्हें इस क्षेत्र में आगे ले जाने के लिए पर्याप्त थी। 13 वर्षों से अधिक के शानदार करियर में उन्होंने विदेश मंत्रालय और विभिन्न भारतीय मिशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारत के कूटनीतिक हितों के प्रति समर्पण
श्री रावत हमेशा भारत की वैश्विक स्थिति का विश्लेषण करने और राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए तत्पर रहते थे। उन्होंने दिल्ली, टोक्यो, यांगून और ब्रुसेल्स में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं और हर जगह अपने काम से गहरी छाप छोड़ी।
टोक्यो में पहली पोस्टिंग: उन्होंने जापानी भाषा और संस्कृति के प्रति गहरी रुचि दिखाई, जिसके कारण उन्होंने जापानी भाषा में दक्षता हासिल की और भारत-जापान संबंधों को मजबूत करने में अहम योगदान दिया। ब्रुसेल्स में कार्यकाल: यूरोप-वेस्ट डेस्क पर रहते हुए उन्होंने भारत-पश्चिम यूरोप संबंधों को मजबूती देने वाले नीतिगत निर्णयों में योगदान दिया।
यांगून (म्यांमार) में महत्वपूर्ण भूमिका: 2020-2023 के दौरान प्रथम सचिव (विकास सहयोग) के रूप में उन्होंने 1.5 बिलियन डॉलर से अधिक की द्विपक्षीय विकास परियोजनाओं की निगरानी की।
उन्होंने राखीन राज्य में सित्तवे बंदरगाह के उद्घाटन में अहम भूमिका निभाई, जो भारत के कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
2022 में तामू में एक एकीकृत चेक पोस्ट के निर्माण के लिए एक ऐतिहासिक समझौता किया, जो भारत-म्यांमार सहयोग को नई मजबूती देने वाला साबित हुआ।
चुनौतियों के बावजूद समर्पण बरकरार
श्री जितेंद्र रावत ने अपने स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से लड़ते हुए भी अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाया। उनकी सहानुभूति, कुशल नेतृत्व और अद्वितीय व्यवहार ने उन्हें अपने सहयोगियों और अधीनस्थों के बीच अत्यंत प्रिय बना दिया।
वरिष्ठ अधिकारियों ने उनके समर्पण और कुशल कार्यशैली की प्रशंसा की।
उनके अधीनस्थों ने उन्हें एक आदर्श बॉस के रूप में देखा, जो हमेशा मार्गदर्शन करने और प्रेरित करने के लिए तत्पर रहते थे। उनकी हर किसी को सहज महसूस कराने की क्षमता और मुफ्त में मिलने वाली गर्मजोशी भरी मुस्कान उन्हें सबसे अलग बनाती थी।
देश सेवा के प्रति अटूट निष्ठा
हर दिन कार्यस्थल पर उनके विचारों और चर्चाओं का मुख्य विषय यही होता था कि “भारत को कैसे और बेहतर बनाया जाए”। उनकी राजनयिक कुशलता और राष्ट्रीय सेवा की भावना उनके प्रत्येक कार्य में झलकती थी।
परिवार और देश के प्रति उनका योगदान अविस्मरणीय
हम जितेंद्र रावत के परिवार – उनके माता-पिता, पत्नी और बच्चों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं। हमें उम्मीद है कि उनके बच्चे बड़े होकर यह समझेंगे कि उनके पिता भारत के एक प्रिय मित्र और बेहतरीन राजनयिक थे।
उनकी असमय विदाई भारतीय विदेश सेवा के लिए एक अपूरणीय क्षति है। हम उन्हें एक महान राजनयिक, एक सच्चे देशभक्त और एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में हमेशा याद रखेंगे। भारत ने एक नायाब हीरा खो दिया, जिसकी चमक हमेशा हमारे दिलों में बनी रहेगी।