Dehradun (PIB)-प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव प्रमोद कुमार मिश्रा ने आज देश की सिविल सेवा की क्षमता निर्माण आवश्यकताओं पर एक केंद्रीय प्रशिक्षण संस्थान (सीटीआई) की कार्यशाला को आभासी माध्यम से संबोधित किया। अपने प्रारम्भिक सम्बोधन में श्री मिश्रा ने कहा कि आज भारत सामाजिक-आर्थिक विकास और वैश्विक पहचान बनाने की राह में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। उन्होने कहा कि प्रधानमंत्री के पास 2047 तक एक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने का सपना है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि लोक सेवकों को सशक्त बनाया जाए ताकि सार्थक परिवर्तन लाया जा सके, सुशासन के सिद्धांतो को बनाया रखा जा सके और हमारे नागरिकों को कुशल और प्रभावी सेवाएं मिल सके। उन्होंने कहा कि सरकार का ध्यान सुशासन, जन केंद्रितता, भविष्य की तैयारी और कार्यकुशलता बढ़ाने पर है।
उन्होंने कहा कि क्षमता निर्माण का समग्र दृष्टिकोण जन केंद्रित होना चाहिए और क्षमता-निर्माण के हर पहलू और घटक की जांच न केवल वर्तमान संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता के लिए की जानी चाहिए, बल्कि विकसित भारत @ 2047 के दीर्घकालिक लक्ष्यों और दृष्टि को ध्यान में रखते हुए भी की जानी चाहिए। क्षमता-निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोक सेवक इस विकास राह का अनुसरण करते हुए अपनी सार्थक भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
समय के साथ सरकार की प्रकृति में बदलाव पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा जब आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे रहा था, सरकार लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित कर रही थी, पर आज लोगों की सरकार से अपेक्षाएँ बहुत अलग हैं। उन्होंने कहा कि आज के आकांक्षी भारत के लिए सरकार को सुविधा प्रदाता बनना होगा, नियामक से हमें समर्थक बनना होगा और इसके लिए रूढ़िवादी मान्यताओं और दृष्टिकोणों को बदलना होगा। विशाल मानव संसाधन के संरक्षक होने के नाते, भारत सरकार के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है।
श्री मिश्रा ने प्रशिक्षण संस्थाओं का आह्वान किया कि वे क्षमता निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर विकसित भारत का सपना साकार करें। प्रत्येक संस्थान में अपनी अंतर्निहित क्षमता और विशेषज्ञता होती है जो पूरी नौकरशाही के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है, जिसके आधार पर एक अधिक सामंजस्यपूर्ण क्षमता निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की गुंजाइश है। इस क्षमता-निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को प्रणाली स्तर पर मजबूत करने की आवश्यकता है। हमारे कई लोक सेवक आज असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन कर रहे है, लेकिन क्षमता निर्माण के लिए एक संस्थागत और सुविचारित दृष्टिकोण आवश्यक है जो प्रत्येक लोक सेवक को और बेहतर तथा युक्ततम प्रदर्शन में सहायक हो सकता है।
उन्होंने कहा कि सीबीसी “कर्मयोगी कोम्पीटेन्सी मॉडल” विकसित कर रहा है, जो एक स्वदेशी सार्वजनिक मानव संसाधन प्रबंधन ढांचा है जिससे दक्षताओं को समझा और परिभाषित किया जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि कोम्पीटेन्सी मॉडल के अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि ज्ञान पर सभी का अधिकार हो, सीबीसी अमृत ज्ञान कोष भी विकसित कर रहा है, जो हमारे संस्थानों में प्रशिक्षण के लिए उपयोग की जाने वाली केस स्टडी और अन्य सामग्री के रूप में लोक प्रशासन की सर्वोत्तम कार्यशैलियों का भंडार होगा।
श्री मिश्रा ने प्रशिक्षण संस्थाओं का आह्वान किया कि वे क्षमता निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर विकसित भारत का सपना साकार करें। प्रत्येक संस्थान में अपनी अंतर्निहित क्षमता और विशेषज्ञता होती है जो पूरी नौकरशाही के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है, जिसके आधार पर एक अधिक सामंजस्यपूर्ण क्षमता निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की गुंजाइश है। इस क्षमता-निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को प्रणाली स्तर पर मजबूत करने की आवश्यकता है। हमारे कई लोक सेवक आज असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन कर रहे है, लेकिन क्षमता निर्माण के लिए एक संस्थागत और सुविचारित दृष्टिकोण आवश्यक है जो प्रत्येक लोक सेवक को और बेहतर तथा युक्ततम प्रदर्शन में सहायक हो सकता है।
उन्होंने कहा कि सीबीसी “कर्मयोगी कोम्पीटेन्सी मॉडल” विकसित कर रहा है, जो एक स्वदेशी सार्वजनिक मानव संसाधन प्रबंधन ढांचा है जिससे दक्षताओं को समझा और परिभाषित किया जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि कोम्पीटेन्सी मॉडल के अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि ज्ञान पर सभी का अधिकार हो, सीबीसी अमृत ज्ञान कोष भी विकसित कर रहा है, जो हमारे संस्थानों में प्रशिक्षण के लिए उपयोग की जाने वाली केस स्टडी और अन्य सामग्री के रूप में लोक प्रशासन की सर्वोत्तम कार्यशैलियों का भंडार होगा।
श्री मिश्रा ने प्रशिक्षण संस्थानों को सलाह दी कि वे अपने प्रशिक्षण डिजाइन में गुणवत्ता सुधार लाएं, प्रशिक्षण कार्यक्रमों को सिविल सेवाओं की वर्तमान और भविष्य की जरूरतों के साथ जोड़ें और अनुसंधान पर आधारित कार्रवाई करें। उन्होंने कहा कि केंद्रीय प्रशिक्षण संस्थानों (सीटीआई) को अपने संबंधित विभागों के लिए समाधानकर्ता बनें, अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र के आसपास एक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करें और ज्ञान केंद्र बनने के लिए सक्रिय रूप से काम करें।
श्री मिश्रा ने प्रशिक्षण अकादमियों को विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग करने की सलाह दी और कहा क्षमता निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिए इन संस्थाओं को नॉलेज हब बनाने कि दिशा में कार्य करें। उन्होंने कहा कि सीटीआई को अपने लिए विशेषज्ञता के एक क्षेत्र की पहचान बनानी चाहिए, जिसमें उन्हें तुलनात्मक लाभ हो। इससे संस्थाएं ज्ञान और उत्कृष्टता का केन्द्र बन सकती हैं जिससे प्रत्येक व्यक्ति लाभान्वित होगा। किसी भी सेवा के लोक सेवक सीटीआई में आकार यहाँ की विशिष्ट क्षमताओं से दक्षता हासिल कर सकते हैं।
श्री मिश्रा ने सिविल सेवकों को दिए जाने वाले प्रशिक्षण के ढांचे को बदलने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि बदलते समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए क्षमता निर्माण की पहल को पारंपरिक प्रशिक्षण संरचनाओं से परे जाना होगा। उन्होंने कहा कि शासन में बदलाव तभी आएगा जब सही रवैया और कौशल प्रत्येक कर्मचारी तक पहुंचेगा। डिजिटल क्रांति सरकारी सेवाओं की दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए अभूतपूर्व अवसर प्रस्तुत करती है। ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म और वर्चुअल क्लासरूम से लेकर डेटा एनालिटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक, हमें अपने लोक सेवकों को सशक्त बनाने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का लाभ उठाना चाहिए।
डेटा विश्लेषण और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में उभरती तकनीकी जीवन के हर पहलू में क्रांति ला रही है। सरकार में हर स्तर पर निर्णय लेना मजबूत डेटा बेस पर आधारित होना चाहिए। श्री मिश्रा ने कहा कि हमारी सिविल सेवा को तकनीक का उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए और इसके लिए अधिकारियों को प्रारंभिक चरण से ही इन तकनीकों से परिचित होना चाहिए।
श्री मिश्रा ने आशा व्यक्त की कि यह कार्यशाला क्षमता निर्माण के इन सभी और कई अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार-विमर्श करेगी और ठोस-कार्रवाई-बिन्दुओं के साथ सामने आएगी।