भारत-पाक सीमा पर जब भी तनाव की खबरें आती हैं, तो 78 साल पूर्व भारत-पाक विभाजन की पीड़ा के घाव फिर हरे हो जाते हैं। फिर वही खानाबदोश जीवन याद आ जाता है। यह कहना है कि भारत-पाक विभाजन की गवाह 84 वर्षीय उर्मिला खेड़ा का। वह कहती हैं कि विभाजन के वक्त को सोच कर आज भी रूह कांप जाती है।
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पुराने दिनों की याद करते हुए वह बताती हैं कि विभाजन से पूर्व उनका पूरा परिवार पाकिस्तान के कुली खान बन्नू में रहता था। भले ही वहां ज्यादा घूमने-फिरने की आजादी नहीं थी, लेकिन कई पीढि़यों से रह रहे थे तो वहां के माहौल में खुद को ढाल लिया था। सब कुछ ठीक चल रहा था। मैं छह साल की थी, इसी बीच भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की आग सुलग गई।
तनाव बढ़ने पर हिंसा भड़की और हमारी 17 दुकानें जला दी गईं। अपने ही घरों में हम दुबक कर रहने को मजबूर हो गए थे। हम मकान के दूसरे माले पर रहते थे, तो मुस्लिम रात को दूसरे माले को जाने वाली लकड़ियों की सीढ़ी हटा देते थे, ताकि हम लोग कहीं भाग न सकें।